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Fruit Cultivation

ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाखों कमा रहे किसान

ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाखों कमा रहे किसान

हमारे यूजर श्री संजय शर्मा जी, राकेश कुमार ग्राम कलुआ नगला, ने ड्रैगन फ्रूट के बारे में जानकारी मांगी थीड्रैगन फ्रूट मूलतः वियतनाम,थाईलैंड,इज़रायल और श्रीलंका में मशहूर है.या आप कह सकते हैं की वहीं से ये दुनियां में फैला है.ड्रैगन फ्रूट का पेड़ कैकटस प्रजाति का होता है। इसे कम उपजाऊ मिट्टी और कम पानी के साथ भी उगाया जा सकता है। इसको बीज के साथ भी उगाया जा सकता है लेकिन ये एक लम्बी और कठिन प्रक्रिया है इसको कटिंग के साथ उगाने की सलाह दी जाती है इसके फ्रूट से शरीर को कई पोषक तत्व मिलते हैं इसको खाने से मधुमेह, शरीर में दर्द और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है जो की शरीर को कई तरह के रोगों से लड़ने में सहायता करता है। भारत में भी इसकी मांग बढ़ती जा रही है। इसलिए ड्रैगन फ्रूट की खेती भारत में भी बढ़ने लगी है।

लगाने का समय:

ड्रैगन फ्रूट को साल में दो बार लगाया जा सकता है एक फरवरी और सितम्बर के महीने में इसको लगाते समय ध्यान रखना चाहिए की मौसम ज्यादा गर्म न हो जिससे की पौधे को ज़माने में दिक्कत न हो। जैसा की हमने ऊपर बताया है इसकी कटिंग को लगाना ज्यादा अच्छा होता है और उसके जल्दी से फल आने की गारंटी होती है। इसके फल सितम्बर से दिसंबर तक आते हैं इनको 5 से 6 बार तोडा जाता है।

मिट्टी की सेहत:

इसको जैसा की हमने बताया है इसको किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है दोमट मिटटी सबसे ज्यादा मुफीद होती है लेकिन क्योकि ये कैक्टस प्रजाति का पौधा है तो इसे कम उपजाऊ,पथरीली और कम पानी वाली जगह भी आसानी से उगाया जाता है। इसकी मिटटी में जल जमा नहीं होना चाहिए. ये पौधा कम पानी चाहता है. बेहतर होगा की इसको ऐसी जमीन में लगाया जाना चाहिए जहाँ पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था हो और जहाँ पानी  का ठहराब न हो।

उपयुक्त जलवायु:

इसको बहुत ज्यादा तापमान भी बर्दास्त नहीं होता नहीं होता है तो इससे बचने के लिए इसके लिए छाया की व्यवस्था की जा सकती है. वैसे गर्मी से बचने के लिए इसमें समय समय पर पानी देना होता है. पानी देने के लिए ड्राप सिचांई ज्यादा अच्छी रहती है. एक बार कम तापमान में इसका पौधा जम जाये तो ये ज्यादा तापमान को भी झेल लेता है।

खेत की तैयारी:

इसके लिए खेत को समतल करके अच्छी जुताई करके 2 मीटर के अंतराल पर 2 X2 X2 फुट के गड्ढे बना देने चाहिए तथा इसको 15 दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए जिससे की इसकी गर्मी निकल जाये उसके बाद इसमें गोबर की सूखी और बनी हुई खाद बालू , मिटटी और गोबर को बराबर के अनुपात में गड्ढे में भर देना चाहिए और कटिंग लगाने के बाद रोजाना शाम को ड्राप सिंचाई करनी चाहिए. ये पौधे को जमने में और बढ़ने में सहायता करता है।

ड्रैगन फ्रूट्स के प्रकार:

[caption id="attachment_2984" align="aligncenter" width="300"]Dragon fruit ड्रैगन फल[/caption] ड्रैगन फ्रूट्स ३ तरह के होते है. लाल रंग के गूदे वाला लाल रंग का फल , सफेद रंग के गूदे वाला पीले रंग का फल और सफेद रंग के गूदे वाला लाल रंग का फल. सभी तीनों तरह के फल भारत में उगाये जा सकते हैं. लेकिन लाल रंग के गूदे वाले लाल फल को भारत में ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है. लेकिन इसकी उपज बाजार की मांग के अनुरूप करनी चाहिए. इसका बजन सामान्यतः 300 ग्राम से 800 ग्राम तक होता है और इसके फल की तुड़ाई एक पेड़ से 3 से 4 बार होती है।

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रखरखाब:

  • इसके पेड़ को किसी सहारे की जरूरत होती है क्योकि जब पेड़ बढ़ता है तो ये अपना वजन सह नहीं पता है तो इसके पेड़ के पास कोई सीमेंटेड पिलर या लकड़ी गाड़ देनी चाहिए जो की इसके पेड़ का बजन सह सके।
  • आप ड्रैगन फलों के पौधों को कटिंग और बीज दोनों से उगा सकते हैं। हालांकि, बीज द्वारा ड्रैगन फल की सिफारिश नहीं की जाती है क्योंकि इसमें लंबा समय करीब करीब 5 साल का वक्त लग जाता है।
  • जब आप कटिंग से ड्रैगन फ्रूट उगाते हैं, तो 1 फुट लंबाई का 1 साल पुराना कटिंग लगाने के लिए बहुत उपयुक्त होता है।
  • ड्रैगन फ्रूट कुछ शेड को सहन कर सकता है और गर्म जलवायु परिस्थितियों को प्राथमिकता देता है। इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं है.ड्रैगन फ्रूट प्लांट को मध्यम नम मिट्टी की आवश्यकता होती है जो कि ड्राप सिंचाई से पूरी कि जा सकती है.
  • आप फूल और फल आने के समय पानी की मात्रा बढ़ा सकते हैं। ड्रैगन फ्रूट कि खेती में ड्रिप सिंचाई ही सबसे उपयुक्त होती है।
  • ड्रैगन फल आसानी से बर्तन, कंटेनर, छत पर और घर के बगीचे के पिछवाड़े में उगाए जा सकते हैं.यदि आप कंटेनर को सूरज की रोशनी के लिए खिड़की के पास रखते हैं, तो ड्रैगन फलों को घर के अंदर उगाया जा सकता है।
  • ड्रैगन फलों के पौधों को दुनिया के उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय स्थानों में उगाया जा सकता है।
  • किसी भी अन्य फलों के पौधों की तरह, ड्रैगन फलों के पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
  • ड्रैगन फ्रूट के पौधों को 40 ° C के तापमान तक सबसे अच्छा उगाया जा सकता है।

बाजार:

इसकी मांग वहां ज्यादा होती है जहाँ हेल्थ को लेकर लोग जागरूक होते है इसका मतलब है की आप इसको बड़े शहरों में बेच सकते हो जहाँ आपको इसकी अच्छी कीमत मिल जाएगी. इसका कीमत 150 से 250 रुपये किलो के हिसाब से होती है इसको अगर एक्सपोर्ट करना हो तो जैसे ही इसका रंग लाल होना शुरू हो तभी इसको तोड़ लेना चाहिए तथा ध्यान रहे की इसमें कोई निशान या किसी बजन से दबे नहीं, नहीं तो इसके ख़राब होने के चांस बढ़ जाते है।

रोग:

ड्रैगन फ्रूट में कोई रोग नहीं आता है अभी तक ऐसा कुछ रोग इसका मिला नहीं है हाँ लेकिन ध्यान रहे जब इसके फूल और फल आने का समय हो उस समय मौसम साफ और शुष्क होना चाहिए आद्रता वाले मौसम में फल पर दाग आने की संभावना रहती है. रखरखाब में सबसे ज्यादा इसको लगाने के समय पर जरूरत होती है।

खाद:

  • ड्रैगन फ्रूट्स को खाद की जरूरत ज्यादा होती है. ये एक गूदा वाला फल होता है तो इससे अच्छा और बड़ा फल लेने के लिए इसके  फलों के पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
  • पौधे की उपलब्धता और बाजार के बारे में स्थान स्थान के हिसाब से बदल जाते हैं. इसके लिए बेहतर है की आप अपने क्षेत्र के कृषि अधिकारी से बात करें तथा पूरी जानकारी लेने के बाद ही इसकी खेती शुरी करें।
इस राज्य के किसान ने एक साथ विभिन्न फलों का उत्पादन कर रचा इतिहास

इस राज्य के किसान ने एक साथ विभिन्न फलों का उत्पादन कर रचा इतिहास

आज हम आपको गुरसिमरन सिंह नामक एक किसान की सफलता की कहानी बताने जा रहे हैं। बतादें, कि किसान गुरसिमरन ने अपने चार एकड़ के खेत में 20 से अधिक फलों का उत्पादन कर लोगों के समक्ष एक नजीर पेश की है। आज उनके फल विदेशों तक बेचे जा रहे हैं। पंजाब राज्य के मालेरकोटला जनपद के हटोआ गांव के युवा बागवान किसान गुरसिमरन सिंह अपनी समृद्ध सोच की वजह से जनपद के अन्य कृषकों के लिए भी प्रेरणा के स्रोत बन चुके हैं। यह युवा किसान गुरसिमरन सिंह अपनी दूरदर्शी सोच के चलते पंजाब के महान गुरुओं-पीरों की पवित्र व पावन भूमि का विस्तार कर रहे हैं। वह प्राकृतिक संसाधनों एवं पर्यावरण के संरक्षण हेतु अथक व निरंतर कोशिशें कर रहे हैं। साथ ही, समस्त किसानों एवं आम लोगों को प्रकृति की नैतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों के तौर पर प्राकृतिक संसाधनों को बचाने हेतु संयुक्त कोशिशें भी कर रहे हैं।

किसान गुरसिमरन ने टिश्यू कल्चर में डिप्लोमा किया हुआ है

बतादें, कि किसान गुरसिमरन सिंह ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से टिश्यू कल्चर में डिप्लोमा करने के पश्चात अपनी चार एकड़ की भूमि पर जैविक खेती के साथ-साथ विदेशी
फलों की खेती शुरु की थी। गुरसिमरन अपनी निजी नौकरी के साथ-साथ एक ही जगह पर एक ही मिट्टी से 20 प्रकार के विदेशी फल पैदा करने के लिए विभिन्न प्रकार के फलों के पेड़ लगाए थे। इससे उनको काफी ज्यादा आमदनी होने लगी थी। किसान गुरसिमरन सिंह के अनुसार, यदि इंसान के मन में कुछ हटकर करने की चाहत हो तो सब कुछ संभव होता है।

विदेशों तक के किसान संगठनों ने उनके अद्भुत कार्य का दौरा किया है

किसान गुरसिमरन की सफलता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है, कि पीएयू लुधियाना से सेवानिवृत्त डाॅ. मालविंदर सिंह मल्ली के नेतृत्व में ग्लोबल फोकस प्रोग्राम के अंतर्गत आठ देशों (यूएसए, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, न्यूजीलैंड, स्विटजरलैंड आदि) के बोरलॉग फार्मर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने किसान गुरसिमरन सिंह के अनूठे कार्यों का दौरा किया। यह भी पढ़ें: किसान इस विदेशी फल की खेती करके मोटा मुनाफा कमा सकते हैं

किसान गुरसिमरन 20 तरह के फलों का उत्पादन करते हैं

वह पारंपरिक फल चक्र से बाहर निकलकर जैतून, चीनी फल लोगान, नींबू, अमरूद, काले और नीले आम, जामुन, अमेरिकी एवोकैडो और अंजीर के साथ-साथ एल्फांजो, ब्लैक स्टोन, चोसा, रामकेला और बारामासी जैसे 20 तरह के फलों का उत्पादन करते हैं। किसान गुरसिमरन ने पंजाब में प्रथम बार सौ फल के पौधे लगाकर एक नई पहल शुरु की है। इसके अतिरिक्त युवा किसान ने जैविक मूंगफली, माह, चना, हल्दी, गन्ना, ज्वार,बासमती, रागी, सौंफ, बाजरा, देसी और पीली सरसों आदि की खेती कर स्वयं और अपने परिवार को पारंपरिक फसलों के चक्र से बाहर निकाला है। गुरसिमरन की इस नई सोच की वजह से जिले के किसानों ने भी अपने आर्थिक स्तर को ऊंचा उठाया है। साथ ही, लोगों को पारंपरिक को छोड़ नई कार्यविधि से खेती करने पर आमंत्रित किया है।
कटहल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Jackfruit Farming Information In Hindi)

कटहल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Jackfruit Farming Information In Hindi)

किसान भाइयों बहुत पुराने जमाने से एक कहावत चली आ रही है कि कटहल की खेती कभी गरीब नहीं होने देती यानी इसकी खेती से किसान धनी बन जाते हैं। 

वैसे तो इसे भारतीय जंगली फल या सब्जी कहा जाता है। इसके अलावा कटहल को मीट का विकल्प कहा जाता है। इसके कारण बहुत से लोग इसे पसंद नहीं करते हैं। 

इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को है कि ये कटहल अनेक बीमारियों में फायदा करता है। किसान भाइयों के लिए कटहल की खेती अब लाभकारी हो गयी है। 

इसका कारण यह है कि कटहल के कई ऐसी भी किस्में आ गयीं हैं जिनमें साल के बारहों महीने फल लगते हैं। इससे किसानों को पूरे साल कटहल से आमदनी मिलती रहती है। 

इसलिये किसानों के लिए कटहल की खेती नकदी फसल की तरह बहुत ही लाभकारी है।

कटहल से मिलने वाले लाभ

  1. कटहल में विटामिन ए, सी, थाइमिन, कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, आयरन, जिंक आदि पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं
  2. कटहल का पल्प का जूस हार्ट की बीमारियों में लाभदायक होता है
  3. कटहल की पोटैशियम की मात्रा अधिक पायी जाती है जिससे ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है
  4. रेशेदार सब्जी व फल होने के कारण कटहल से एनीमिया रोग में लाभ मिलता है
  5. कटहल की जड़ उबाल कर पीने से अस्थमा रोग में लाभ मिलता है
  6. थायरायड रोगियों के लिए भी कटहल काफी लाभकारी होता है
  7. कटहल से हड्डियों को मजबूत करता है आॅस्टियोपोरोसिस के रोगों से बचाता है
  8. कटहल में विटामिन ए और सी पाये जाने के कारण वायरल इंफेक्शन में लाभ मिलता है
  9. अल्सर, कब्ज व पाचन संबंधी रोगों में भी कटहल फायदेमंद साबित होता है
  10. कटहल में विटामिन ए पाये जाने के कारण आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
कटहल से मिलने वाले लाभ
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व्यावसायिक लाभ

कटहल के उत्पादन से व्यावसायिक लाभ भी मिलते हैं। कटहल को हरा व पक्का बेचा जा सकता है। इसके हरे कटहल की सब्जी बनायी जाती है। 

इसके अलावा इसका अचार, पापड़ व जूस भी बनाया जाता है। कटहल का फल तो लाभकारी है और इसकी जड़ भी कई तरह की दवाओं के काम आती है।

कटहल की खेती किस प्रकार से की जाती है

आइये जानते हैं कि बहुउपयोगी कटहल की खेती या बागवानी कैसे की जाती है। इसके लिए आवश्यक भूमि, जलवायु, खाद, सिंचाई आदि के बारे में विस्तार से जानते हैं।

मिट्टी एवं जलवायु

कटहल की खेती वैसे तो सभी प्रकार की जमीन में हो जाती है लेकिन दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त बताई जाती है। कटहल की खेती पीएच मान 6.5 से 7.5 वाली मृदा में भी की जा सकती है।

रेतीली जमीन में भी इसकी खेती की जा सकती है। समुद्र तल से 1000 मीटर ऊंचाई वाली पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती की जा सकती है। जलभराव वाली जमीन में इसकी खेती से परहेज किया जाता है क्योंकि जलजमाव से कटहल की जड़ें गल जातीं हैं तथा पौधा गिर जाता है। 

कटहल की खेती शुष्क एवं शीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में आसानी से की जा सकती है। कटहल की खेती अत्यधिक सर्दी बर्दाश्त नहीं कर पाती है। 

दक्षिण भारत में कटहल की खेती अधिक होती है। इसके अलावा असम को कटहल की खेती के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।

कटहल की उन्नत किस्में

कटहल की उन्नत किस्मों में खजवा, गुलाबी, रुद्राक्षी, सिंगापुरी, स्वर्ण मनोहर, स्वर्ण पूर्ति, नरेन्द्र देव कृषि विश्वाविद्यालय की एनजे-1, एनजे-2, एनजे-15 एनजे-3 व केरल कृषि विवि की मुत्तम वरक्का प्रमुख हैं।

कटहल की खेती किस प्रकार से की जाती है

कटहल की रोपाई कैसे करें

कृषक बंधुओं को खेत या बाग की भूमि की अच्छी तरह से जुताई करके और पाटा करके समतल और भुरभुरी बना लेना चाहिये। उसके बाद 10 मीटर लम्बाई चौड़ाई में एक मीटर लम्बाई चौड़ाई और गहराई के थाले बना लेने चाहिये। 

प्रत्येक थालों के हिसाब से 20 से 25 किलो गोबर की खाद व कम्पोस्ट तथा 250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 500 पोटाश, 1 किलोग्राम नीम की खली तथा 10 ग्राम थाइमेट को डालकर मिट्टी में अच्छी तरह से मिला लें।

रोपाई दो तरह से होती है

कटहल की रोपाई दो तरह से होती है। पहला बीजू और दूसरा कलमी तरीका होता है। बीजू रोपाई करने के लिए 40 एमएम की काली पॉलीथिन में पके हुए फल का बीज गोबर की खाद और रेत मिलाकर दबा देना चाहिये। 

दूसरे कलम की पौध नर्सरी से लाकर थाले के बीच एक फूट लम्बे चौड़े और डेढ़ फुट का गहरा गड्ढा बनाकर उसमें लगा देना चाहिये।

रोपाई का समय

रोपाई का सबसे अच्छा समय वर्षाकाल माना जाता है। वर्षाकाल में रोपाई करने से पानी की व्यवस्था अलग से नहीं करनी होती है। कटहल के पौधों की रोपाई करने का सबसे उपयुक्त समय अगस्त सितम्बर का होता है।

सिंचाई प्रबंधन

वर्षा के समय पौधों की रोपाई करने के बाद सिंचाई का विशेष ध्यान रखन होगा। यदि वर्षा हो रही है तो कोई बात नहीं यदि वर्षा न होतो प्रत्येक सप्ताह में सिंचाई करते रहना चाहिये। 

सर्दी के मौसम में प्रत्येक 15 दिन में सिंचाई करना आवश्यक होता है। दो से तीन साल तक पौधों की सिंचाई का विशेष ध्यान रखन होता है। जब पेड़ में फूल आने की संभावना दिखे तब सिंचाई नहीं करनी चाहिये।

पौधों की विशेष निगरानी

कटहल का पौधा लगाने के एक साल बाद तक विशेष निगरानी करते रहना चाहिये। समय समय पर थाले की निराई गुड़ाई करते रहना चाहिये। 

अगस्त सितम्बर माह में खाद व उर्वरक का प्रबंधन करते रहना चाहिये। इसके अलावा समय-समय पर सिंचाई की भी देखभाल करते रहना चाहिये। इसके अलावा पौधों की बढ़वार के लिए समय-समय पर कांट छांट भी की जानी चाहिये।

जड़ से पांच-छह फीट तक तनों व शाखाओं को काट कर पेड़ को सीधा बढ़ने देना चाहिये। उसके बाद चार-पांच तनों को फैलने देना चाहिये। इस तरह से पेड़ का ढांचा अच्छी तरह से विकसित हो जाता है तो अधिक फल लगते हैं।

खाद व उर्वरक प्रबंधन

कटहल के पेड़ में प्रत्येक वर्ष फल आते हैं, इसलिये अच्छे उत्पादन के लिए पेड़ों को खाद व उर्वरक उचित समय पर पर्याप्त मात्रा में देना चाहिये। 

प्रत्येक पौधे को 20 से 25 किलोग्राम गोबर की खाद, 100 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 100 ग्राम पोटाश प्रतिवर्ष बरसात के समय देना चाहिये। 

जब पौधों की उम्र 10 वर्ष हो जाये तो खाद व उर्वरकों की मात्रा बढ़ा देनी चाहिये। उस समय प्रति पौधे के हिसाब से 80 से 100 किलो तक गोबर की खाद, एक किलोग्राम यूरिया, 2 किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा एक किलो पोटाश देना चाहिये।

कीट-रोग व रोकथाम

कटहल की खेती में अनेक प्रकार के कीट एवं रोग व कीटजनित रोग लगते हैं। उनकी रोकथाम करना जरूरी होता है। आइये जानते हैं कीट प्रबंधन किस तरह से किया जाये। 

1. माहू : कटहल में लगने वाला माहू कीट पत्तियों, टहनियों, फूलों व फलों का रस चूसते हैं। इससे पौधों की बढ़वार रुक जाती है। 

जैसे ही इस कीट का संकेत मिले। वैसे ही इमिडाक्लोप्रिट 1 मिलीलीटर को एक लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़काव करें।

2. तना छेदक: इस कीट के नवजात कीड़े कटहल के मोटे तने व डालियों मे छेद बनाकर घुस जात हैं और अंदर ही अंदर पेड़ को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे पेड़ सूखने लगता है तथा फसल पर विपरीत असर पड़ने लगता है। 

इसका पता लगते ही पेड़ में दिखने वाले छेद को अच्छी तरह से किसी पतले तार आदि से सफाई करना चाहिये फिर उसमें नुवाक्रान का तनाछेदक घोल 10 मिलीलीटर एक लीटर पेट्रोल या करोसिन में मिलाकर तेल की चार-पांच बूंद रुई में डालकर छेद को गीली चिकनी मिट्टी से बंद कर दें तो लाभ होगा। 

3. गुलाबी धब्बा : इस रोग से पत्तियों में नीचे की ओर से गुलाबी रंग का धब्बा बनने लगता है। इसकी रोकथाम के लिए कॉपर जनित फफूंदनाशी कॉपर आक्सीक्लोराइड या ब्लू कॉपर 3 मिली लीटर को प्रति लीटर पानी में मिलकार छिड़काव करना चाहिये। 

4. फल सड़न रोग: यह एक फफूंदी रोग। इस रोग के लगने के बाद कोमल फलों के डंठलों के पास धीरे-धीरे सड़ने लगता है। 

इसकी रोकथाम के लिए ब्लू कॉपर के 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल का छिड़काव तुरन्त करें और उसके 15 दिन बाद दुबारा छिड़काव करने लाभ मिलता है। 

यदि इसके बाद भी लाभ न मिले तो एक बार फिर छिड़काव कर देना चाहिये।

कटहल के फल की तुड़ाई कब और कैसे करें

कटहल का फल साधारण तौर पर फल लगने के 100 से 120 दिन के बाद तोड़ने के लायक हो जाता है। 

फिर भी जब इसका डंठल तथा डंठल से लगी पत्तियों का रंग बदल जाये यानी हरा से हल्का भूरा या पीला हो जाये और फल के कांटों का नुकीलापन कम हो जाये तब किसी तेज धार वाले चाकू से दस सेंटीमीटर डंठल के साथ तोड़ लेना चाहिये। 

यदि फल काफी ऊंचाई से तोड़ रहे हैं तो उसे रस्सी के सहारे नीचे उतारना चाहिये वरना जमीन पर गिर जाने से फल खराब हो सकता है।

पैदावार

कटहल के बीज से बोई गई खेती में फसल 7 से 8 वर्ष में फल आने लगते हैं और कलम से लगाई गई खेती में 5 से 6 साल में फल आने लगते हैं। 

यदि अच्छी तरह से देखभाल की जाये तो एक वृक्ष से 4 से 5 क्विंटल कटहल आसानी से पाया जा सकता है। यदि एक हेक्टेयर में 150 से 200 पौधे लगाये गये हैं तो इससे प्रतिवर्ष 3 से 4 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है। 

दूसरे वर्ष इसकी फसल में कोई लागत नही लगती है और फसल इससे अधिक होती है।

वैज्ञानिकों द्वारा खोजी गई कटहल की इस नई किस्म से किसानों को होगा लाभ

वैज्ञानिकों द्वारा खोजी गई कटहल की इस नई किस्म से किसानों को होगा लाभ

आईआईएचआर-बेंगलुरु के वैज्ञानिकों को यह कटहल हाल ही में बेंगलुरु के ही बाहरी क्षेत्रों के एक किसान नागराज के खेत में ही मिला। ये फसल अपने असाधारण स्वाद एवं पोषण मूल्यों के लिए जाना जाता है। भारत में किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए यहां के कृषि वैज्ञानिक दिन-रात कड़ा परिश्रम करते हैं। दरअसल, भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की अधिकांश आबादी आज भी खेती किसानी पर निर्भर रहती है। इसके चलते सरकार भी इस फिराक में रहती है, कि किसानों को किसी भी स्थिति में इतनी सहायता पहुंचाई जा सके, जिससे कि उनकी रोजी रोटी सहजता से चलती रहे। यही वजह है, कि वैज्ञानिकों ने अब एक नए किस्म के कटहल की खोज की है, आइए आज हम आपको इसके लाभ बताते हैं। बतादें कि कृषि वैज्ञानिकों की वजह से ही आज खेती किसानी काफी विकासित हुई है।

वैज्ञानिकों को मिला कटहल कैसा दिखता है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई यह नई कटहल भी किसी सामान्य कटहल की तरह खाने वाला कटहल ही है। परंतु, ये नया कटहल व्यावसायिक प्रसंस्करण के लिए अत्यंत ज्यादा अनुकूल है। इस नए कटहल को सिद्दू और शंकरा कहा जाता है। इसे मिलाकर अब तक वैज्ञानिकों ने कटहल की तीन किस्मों की खोज कर ली है। ये तीनों किस्में भारत के अंदर पाई जाती हैं। सबसे मुख्य बात यह है, कि अब तक व्यावसायिक तौर पर केवल दो किस्मों का ही उत्पादन होता था। परंतु, नई किस्म मिलने के उपरांत अब तीन किस्मों की पैदावार की जा सकेगी। ये भी पढ़े: कटहल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Jackfruit Farming Information In Hindi)

वैज्ञानिकों को यह नए किस्म का कटहल कहाँ मिला है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि आईआईएचआर-बेंगलुरु के वैज्ञानिकों को ये कटहल हाल ही में बेंगलुरु के ही बाहरी इलाके के एक किसान नागराज के खेत में मिला। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह फसल अपने असाधारण स्वाद के साथ-साथ पोषण मूल्यों के लिए भी जानी जाती है। इस नई किस्म के साथ सबसे उत्तम बात यह है, कि इसकी पैदावार अन्य किस्मों से कहीं अधिक होती है। ये भी पढ़े: कटहल के फल गिरने से रोकथाम सबसे विशेष बात यह है, कि इस नए किस्म की एक कटहल का वजन तकरीबन 25 से 32 किलोग्राम तक होता है। अर्थात यदि आप कटहल की खेती कर के उससे मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो ये नई किस्म आपके लिए सर्वाधिक अनुकूल है। वैज्ञानिकों का कहना है, कि वह किसान नागराज के साथ एक समझौता कर रहे हैं। साथ ही, कटहल की इस नवीन किस्म को और बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। यदि सब कुछ अच्छा रहा तो कुछ वर्षों में ही यह नया कटहल पूरे भारत में लगने लगेगा और प्रति वर्ष किसानों को मोटा मुनाफा प्रदान करेगा।
पोषक तत्वों से भरपूर कटहल की खेती आपकी किस्मत चमका सकती है

पोषक तत्वों से भरपूर कटहल की खेती आपकी किस्मत चमका सकती है

कटहल की खेती कर कृषक भाई बेहतरीन मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। किसान भाई महज एक हेक्टेयर खेत में ही 150 कटहल के पौधे रोप सकते हैं। आलू-प्याज की खेती कर के बोर हो चुके कृषक भाइयों के लिए यह फायदेमंद समाचार है। जो किसान कृषि क्षेत्र में कुछ अलग करना चाहते हैं। वह जैकफ्रूट मतलब की कटहल की खेती कर शानदार मुनाफा पा सकते हैं। कटहल का उपयोग सब्जी एवं फल दोनों ही रूप में किया जाता है। बहुत से घरों में तो इसका अचार भी डाला जाता है, जो कि सेवन में काफी स्वादिष्ठ होता है। कटहल बाजार में भी काफी मांग में रहने वाली सब्जियों में शुमार है।

कटहल के अंदर भरपूर मात्रा में मिनरल पाए जाते है

कटहल में विटामिन एवं मिनरल काफी भरपूर मात्रा होते हैं। इसमें विटामिन सी, विटामिन बी 6, नियासिन की भांति बहुत सारे विटामिन मिलते हैं। इसके साथ-साथ कटहल में फास्फोरस, कैल्शियम, सोडियम, आयरन, पोटैशियम और जिंक जैसे मिनरल्स भी मौजूद होते हैं। कटहल को सदाबहार फसल के नाम से भी जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि इसकी खेती किसी भी मौसम में की जा सकती है। केरल, कर्नाटक, यूपी, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल के अतिरिक्त भी बहुत से अन्य राज्यों में कटहल की खेती की जाती है। दोमट मृदा को कटहल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। विशेषज्ञों का कहना है, कि कटहल के खेत में जल निकासी की बेहतरीन व्यवस्था होनी आवश्यक है।

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कृषक भाइयों के लिए खेत की बेहतर जुताई आवश्यक

कृषक भाई कटहल की खेती करने से पूर्व खेत की बेहतरीन ढ़ंग से जुताई कर लें। बतादें कि खाद के तौर पर खेत में गोबर डालें। अब एक समान फासले पर गड्ढे खोदकर कटहल के पौधे लगा दें। दरअसल, 15 दिन हो जाने के उपरांत कृषक भाई खेत की सिंचाई करें। किसान खाद के रूप में वर्मी कंपोस्ट एवं नीम की खली का भी उपयोग कर सकते हैं।

एक हेक्टेयर में कितने पौधे लगाए जाते हैं

अगर आप अपने बाग में बीज समेत कटहल की खेती कर रहे हैं, तो 6 साल में फल आने चालू हो जाएंगे। उधर गूटी तरीके से खेती करने पर काफी कम वक्त में ही कटहल के बाग में फल आ जाते हैं। एक हेक्टेयर में कटहल के लगभग 140 से लेकर 150 तक पौधे रोपे जाते हैं। कृषक भाई एक हेक्टेयर भूमि में ही कटहल की खेती कर लाखों रुपये की आमदनी कर सकते हैं।
बागवानी की तरफ बढ़ रहा है किसानों का रुझान, जानिये क्यों?

बागवानी की तरफ बढ़ रहा है किसानों का रुझान, जानिये क्यों?

पारंपरिक खेती के बजाय अब किसान बागवानी(horticulture) खेती की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं, इसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन यदि मौजूदा सरकार की बात करें, तो सरकार बागवानी फसलों को बढ़ावा दे रही है।

देश की केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें बागवानी फसलों को लेकर खाद-बीज, सिंचाई, रखरखाव, कटाई के बाद फसलों के भंडारण पर खास जोर दे रही हैं। 

सरकारों ने बागवानी फ़सलों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए अपने कृषि वैज्ञानिकों को लगा रखा है, जो इस पर बेहद बारीकी से रिसर्च कर रहे हैं तथा नए-नए बीज और संकरित किस्मों का निर्माण कर रहे हैं। 

 इसको लेकर सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है ताकि किसान पारंपरिक खेती के माध्यम से खाद्यान्न फ़सलों की जगह फल, फूल, सब्जी और औषधीय पौधों की खेती पर ध्यान दें।

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खाद्यान्न फ़सलों की अपेक्षा बागवानी फसलों में हो रही है वृद्धि

सरकार ने फसलों के उत्पादन के आंकड़े जारी किये हैं जिसमें बताया है कि मौसम की अनिश्चितता और बीमारियों के प्रकोप के कारण गेहूं, धान, दलहन, तिलहन जैसी पारंपरिक फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली है। 

वहीं बागवानी फसलों की बात करें तो फसलों के विविधिकरण, नई तकनीकों, मशीनरी और नए तरीकों का प्रयोग करने से उत्पादन में दिनों दिन वृद्धि देखने को मिल रही है। साथ ही, बागवानी फसलों में प्राकृतिक आपदा और बीमारियों के प्रकोप का भी उतना असर नहीं पड़ता जितना खाद्यान्न उत्पादन करने वाली खेती में पड़ता है। 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2021-22 के दौरान पारम्परिक खाद्यान्न फसलों के द्वारा 315,72 मिलियन टन उत्पादन हुआ है। जबकि बागवानी फसलों के द्वारा साल 2021-22 के दौरान 341.63 मिलियन टन उत्पादन हुआ है।

साल 2021-22 के दौरान बागवानी फसलों के उत्पादन में 2.10% की वृद्धि हुई है, जबकि खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में इस दौरान कमी देखी गई है।

बागवानी फसलों से प्रदूषण में लगती है लगाम

आजकल धान-गेहूं जैसी पारंपरिक खाद्यान्न फसलों की खेती करने पर कटाई के बाद भारी मात्रा में अवशेष खेत में ही छोड़ दिए जाते हैं। 

ये अवशेष किसानों के किसी काम के नहीं होते, इसलिए खेत को फिर से तैयार करने के लिए उन अवशेषों में आग (stubble burning) लगाई जाती है, जिससे बड़ी मात्रा में वातावरण में प्रदूषण फैलता है और आम लोगों को उस प्रदूषण से भारी परेशानी होती है। 

इसके अलावा किसान पारंपरिक खेती में ढेरों रसायनों का उपयोग करते हैं जो मिट्टी के साथ-साथ पानी को भी प्रदूषित करते हैं। इसके विपरीत बागवानी फसलों की खेती किसान ज्यादातर जैविक विधि द्वारा करते हैं, जिसमें रसायनों की जगह जैविक खाद का इस्तेमाल होता है। 

इसके साथ ही बागवानी फसलों की खेती से उत्पन्न कचरा जानवरों को परोस दिया जाता है या जैविक खाद बनाने में इस्तेमाल कर लिया जाता है, जिससे प्रदूषण बढ़ने की संभावना नहीं रहती। 

बागवानी फसलों में आधुनिक खेती से किसानों की बढ़ी आमदनी

आजकल बागवानी फसलों में किसानों के द्वारा आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। अब भारतीय किसान फल, फूल, सब्जी और जड़ी-बूटियां उगाने के लिए प्लास्टिक मल्च, लो टनल, ग्रीन हाउस और हाइड्रोपॉनिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनके इस्तेमाल से उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी हुई है और लागत में भी कमी आई है।

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इसके अलावा बागवानी फसलें नकदी फसलें होती है। जो प्रतिदिन आसानी से बिक जातीं है और इनकी वजह से किसानों के पास पैसे का फ्लो बना रहता है। 

बागवानी फसलों की मदद से किसानों को रोज आमदनी होती है। बागवानी फसलों के फायदों को देखते हुए कई पढ़े लिखे युवा भी अब इस ओर आकर्षित हो रहे हैं।

मिर्जा गालिब से लेकर बॉलीवुड के कई अभिनेता इस 200 साल पुराने दशहरी आम के पेड़ को देखने पहुँचे हैं

मिर्जा गालिब से लेकर बॉलीवुड के कई अभिनेता इस 200 साल पुराने दशहरी आम के पेड़ को देखने पहुँचे हैं

पुरे विश्व में स्वयं की भीनी-सोंधी खुशबू एवं मीठे स्वाद की वजह से प्रसिद्ध दशहरी आम की खोज 200 वर्ष पूर्व ही हुई थी। लखनऊ के समीप एक गांव में आज भी दशहरी आम का प्रथम पेड़ उपस्थित है साथ बेहद प्रसिद्ध भी है। आम तौर पर लोग गर्मी के मौसम की वजह से काफी परेशान ही रहते हैं। परंतु, एक ऐसा फल है, जिससे गर्मियों का मजा दोगुना कर देती हैं। उस फल का नाम है आम जिसको सभी फलों का राजा बोला जाता है। जी हां, भारत में आम की बागवानी बड़े स्तर पर की जाती है। भारत की मिट्टी में आम की हजारों किस्मों के फल स्वाद लेने को उपस्थित हैं। लेकिन यदि हम देसी आम की बात करें तो इसकी तरह स्वादिष्ट फल पूरे विश्व में कहीं नहीं मिल पाएगा। सभी लोगों की जुबान पर दशहरी आम का खूब चस्का चढ़ा हुआ है। यूपी में ही दशहरी आमों की पैदावार होती है। बतादें कि केवल यहीं नहीं अन्य देशों में भी इस किस्म के आमों का निर्यात किया जाता है। साथ ही, आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि दशहरी आम का नामकरण एक गांव के नाम के आधार पर हुआ था।

इस आम का नाम दशहरी आम क्यों रखा गया था

यूपी के लखनऊ के समीप काकोरी में यह दशहरी गांव मौजूद है। ऐसा कहा जाता है, कि दशहरी गांव के 200 वर्ष प्राचीन इस वृक्ष से सर्वप्रथम दशहरी आम प्राप्त हुआ था। ग्रामीणों से मिलकर इस आम का नामकरण गांव दशहरी के नाम पर हुआ था। वर्तमान में 200 वर्ष उपरांत भी ना तो इस दशहरी आम के स्वाद में कोई बदलाव आया है और ना ही वो पेड़, जिससे विश्व का प्रथम दशहरी आम प्राप्त हुआ था। ये भी पढ़े: नीलम आम की विशेषताएं (Neelam Mango information in Hindi)

इस पेड़ के आम आखिर क्यों नहीं बेचे जाते

फिलहाल, दशहरी आम लखनऊ की शान और पहचान बन चुका है। देश के साथ-साथ विदेशी लोग भी इसका स्वाद चखते हैं। हर एक वृक्ष द्वारा काफी टन फलों की पैदावार हांसिल होती है। परंतु, विश्व का पहला दशहरी आम देने वाला पेड़ अपने आप में भिन्न है। वर्तमान में 200 वर्ष उपरांत भी यह वृक्ष भली-भांति अपनी जगह पर स्थिर है। आम के सीजन की दस्तक आते ही इस बुजुर्ग वृक्ष फलों के गुच्छे लद जाते हैं। परंतु, तेवर ही कुछ हटकर है, कि इस वृक्ष का एक भी फल विक्रय नहीं किया जाता है। मीडिया खबरों के मुताबिक, दशहरी गांव में इस आम के पेड़ को नवाब मोहम्मद अंसार अली ने रोपा था और आज भी उन्हीं के परिवारीजन इस पेड़ पर स्वामित्व का हक रखते हैं। इसी परिवार को पेड़ के सारे आम भेज दिए जाते हैं।

दशहरी आम कैसे पहुँचा मलीहाबाद

दशहरी गांव के लोगों का कहना है, कि बहुत वर्ष पूर्व इस दशहरी आम की टहनी को ग्रामीणों से छिपाकर मलीहाबाद ले जाया गया। जब से ही दशहरी आम मलीहाबादी आम के नाम से प्रसिद्ध हो गया था। ग्रामीणों की श्रद्धा को देखकर आप भी दंग रह जाएंगे। वह इसको एक चमत्कारी वृक्ष मानते हैं। ग्रामीणों के अनुसार, कुछ वर्ष पूर्व यह वृक्ष पूर्णतयः सूख गया था। समस्त पत्तियां पूरी तरह झड़ गई थीं। परंतु, वर्तमान में सीजन आते ही 200 साल पुराना यह वृक्ष आम से लद जाता है।

मिर्जा गालिब भी इस दशहरी आम के मुरीद रहे हैं

जानकारी के लिए बतादें, कि दशहरी गांव फिलहाल मलीहाबाद क्षेत्र के अंतर्गत आता है। मलीहाबाद के लोगों का कहना है, कि कभी मिर्जा गालिब भी कोलकाता से दिल्ली की यात्रा किया करते थे। तब मलीहाबादी आम का स्वाद अवश्य चखा करते थे। वर्तमान में भी बहुत से सेलेब्रिटी दशहरी आम को बेहद पसंद करते हैं। दशहरी गांव के लोगों का कहना है, कि भारतीय फिल्म जगत के बहुत से अभिनेता इस वृक्ष को देखने गांव आ चुके हैं। दूसरे गांव से भी लोग इस वृक्ष को देखने पहुँचते हैं। इसकी छांव के नीचे बैठकर ठंडी हवा का आंनद लेते हैं। सिर्फ इतना ही नही लोग इस पेड़ की यादों को तस्वीरों में कैद करके ले जाते हैं।
इस राज्य में कटहल, आंवला और जामुन की खेती करने पर मिलेगा 50 प्रतिशत अनुदान

इस राज्य में कटहल, आंवला और जामुन की खेती करने पर मिलेगा 50 प्रतिशत अनुदान

बिहार सरकार आए दिन किसानों के हित में नई नई योजनाऐं जारी कर रही है। बिहार सरकार द्वारा बागवानी क्षेत्र का विस्तार किया जा रहा है। राज्य में इसके लिए बागवानी विकास मिशन योजना एवं सूक्ष्म सिंचाई योजना समेत विभिन्न योजना चलाई जा रही है। बिहार राज्य में किसान वर्तमान में पारंपरिक खेती करने की जगह बागवानी फसलों में अधिक रूचि ले रहे हैं। नालंदा, नवादा, पटना, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी सहित तकरीबन समस्त जनपद में किसान आंवला, कटहल, आम, अमरूद और जामुन की खेती कर रहे हैं। इससे इन जिलों में हरियाली तो बढ़ गई है, साथ में किसानों की आमदनी में भी इजाफा हुआ है।

सूक्ष्म सिंचाई आधारित शुष्क बागवानी योजना के अंतर्गत अनुदान दिया जा रहा है

ऐसी स्थिति में भी बिहार सरकार राज्यों में बागवानी क्षेत्र का विस्तार कर रही है। इसके लिए मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना, एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना एवं सुक्ष्म सिंचाई आधारित शुष्क बागवानी योजना समेत कई योजना चला रही है। इन योजनाओं के माध्यम से किसानों को बंपर अनुदान दिया जा रहा है। फिलहाल, उद्यान निदेशालय ने सूक्ष्म सिंचाई आधारित शुष्क बागवानी योजना के अंतर्गत किसानों को फल की खेती करने पर मोटा अनुदान देने का निर्णय किया है। योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को उद्यान निदेशालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन करना होगा। 

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इन बागवानी फसलों पर 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा

सुक्ष्म सिंचाई आधारित शुष्क बागवानी योजना के अंतर्गत बिहार सरकार नींबू, जामुन, बेर, आंवला और कटहल की खेती करने वाले किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान दे रही है। विशेष बात यह है, कि अनुदान की धनराशि प्रत्यक्ष तौर पर किसानों के खातों में हस्तांतरित की जाएगी। इस योजना का प्रमुख उदेश्य किसानों की आमदनी में इजाफा और उनकी आर्थिक हालत में सुधार लाना है। साथ ही प्रदेश में हरियाली भी बढ़ानी है।

राजस्थान सरकार किसानों को फल और मसालों की खेती के लिए प्रोत्साहन राशि दे रही है।

राजस्थान सरकार किसानों को फल और मसालों की खेती के लिए प्रोत्साहन राशि दे रही है।

राजस्थान सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन और कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसानों को अनुदान प्रदान करेगी। दरअसल, राज्य में किसानों को पारंपरिक फसलें जैसे कि मक्का, गेहूं और सरसों आदि की खेती से अच्छी आमदनी नहीं हो पा रही है। राजस्थान में किसान अब बागवानी और मसालों की खेती करेंगे। इसके लिए किसानों को राज्य सरकार की तरफ से अच्छी खासी सब्सिडी मुहैय्या कराई जाएगी। मुख्य बात यह है, कि सब्सिडी पाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार द्वारा करोड़ों रुपये की धनराशि स्वीकृत कर दी है। अगर राजस्थान के किसान फल और मसालों की खेती करते हैं, तो उन्हें 40 प्रतिशत तक अनुदान मिलेगा। इसके लिए उन्हें राजकिसान साथी पोर्टल पर जाकर आवेदन करना पड़ेगा।

राजस्थान के किसानों को पारंपरिक फसलों से कोई लाभ नहीं मिला

राजस्थान सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन और कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसानों को अनुदान देगी। दरअसल, राज्य सरकार का यह मानना है, कि प्रदेश में किसान भाइयों को गेहूं, सरसों एवं मक्का जैसी पारंपरिक फसलों की खेती से अच्छी आय नहीं हो पा रही है। अगर प्रदेश के किसान आधुनिक विधि से बागवानी और मसालों की खेती करते हैं, तो किसानों की आमदनी में काफी बढ़ोतरी हो सकती है। यही कारण है, कि राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बागवानी और मसाले के क्षेत्रफल में विस्तार करने के लिए 23.79 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। ये भी पढ़े: दालचीनी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी (How to Grow Cinnamon)

राजस्थान सरकार 7609 हेक्टेयर में फल के बगीचे तैयार कर रही है

सरकारी अधिकारियों के अनुसार, राजस्थान सरकार ने वर्ष 2023-24 में 7609 हेक्टेयर भूमि में फल के बगीचे तैयार करने की योजना तैयार की है। इसके ऊपर सरकार सब्सिडी के तौर पर 22.40 करोड़ रुपये खर्च करेगी। साथ ही, मसाले के रकबे के विस्तार पर अनुदान धनराशि के रूप में 1.39 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार, सीएम गहलोत द्वारा मंजूर किए गए 23.79 करोड़ रुपये में से 17.24 करोड़ रुपये की धनराशि राजस्थान कृषक कल्याण कोष में से प्रदान की जाएगी। साथ ही, 6.55 करोड़ रुपये राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से खर्च किए जाएंगे।

राजस्थान सरकार कितना अनुदान प्रदान कर रही है

मुख्य बात यह है, कि राजस्थान में सरकार पूर्व से ही मसालों की खेती पर अनुदान मुहैय्या कर रही है। साथ ही, किसानों को आधुनिक विधि से मसालों की खेती करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है। लेकिन, इस योजना के अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा 4 हेक्टेयर एवं कम से कम 0.50 हेक्टेयर में मसालों की खेती करने वाले किसान अनुदान का फायदा उठा सकते हैं। किसानों को 40 प्रतिशत अनुदानित धनराशि दी जाएगी। मतलब कि उन्हें प्रति हेक्टेयर 5500 रुपये अनुदान के रूप में मिलेंगे।

अनुदान का फायदा लेने के लिए आवश्यक दस्तावेज

अगर किसान भाई अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं, तो नजदीकी ई-मित्र केंद्र अथवा राजकिसान साथी पोर्टल पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करते समय किसान के पास खुद की खेत की जमाबंदी, आधार कार्ड, खेती योग्य जमीन, इलेक्ट्रिसिटी बिल, बैंक पासबुक की कॉपी और स्थानीय आवासीय प्रमाण पत्र होना काफी अनिवार्य है।
गुलाबी फलों का उत्पादन कर किसान सेहत के साथ साथ कमाऐं मुनाफा

गुलाबी फलों का उत्पादन कर किसान सेहत के साथ साथ कमाऐं मुनाफा

गुलाबी रंग के फल हमारे शरीर के लिए काफी लाभकारी होते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही फलों के विषय में बताने जा रहे हैं। गुलाबी खाद्य पदार्थ, एंथोसायनिन और बीटालेंस जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। यह हमारे शरीर में एंटीऑक्सिडेंट का कार्य करते हैं, जो प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करते हैं। हम अपनी थाली में कई तरह के फलों और सब्जियों का उपयोग करते हैं। परंतु, गुलाबी रंग के खाद्य पदार्थ हमारे शरीर के लिए बेहद ही लाभकारी होता है। ऐसे में आज हम आपको गुलाबी रंग के कुछ फलों के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं, जो हमारे शरीर की उत्तम सेहत के लिए आवश्यक होता है। प्राकृतिक रूप से गुलाबी खाद्य पदार्थों में एंथोसायनिन और बीटालेन, फ्लेवोनोइड और एंटीऑक्सिडेंट युक्त यौगिक शम्मिलित होते हैं, जो शरीर को कई प्रकार की बीमारियों से सुरक्षा करता है।

गुलाबी फलों का उत्पादन

चुकंदर

चुकंदर हमारे शरीर का रक्त परिसंचरण को बढ़ाने, रक्तचाप को सुदृढ़ रखने में सहायता करता है। कच्चे चुकंदर के रस का सेवन, सलाद एवं सब्जी के रूप में उपयोग करना चाहिए। यह हमारे शरीर के लिए जरूरी विटामिन, खनिज एवं फोलेट की मात्रा की पूर्ति करता है। इसके अलावा चुकंदर में एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते हैं जो कैंसर-रोधी गुणों के लिए जाने जाते हैं।

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अनार

अनार का सेवन हमारी रक्त शर्करा और रक्तचाप को नियंत्रित करता है। यह हमारी पाचन संबंधी समस्याओं के लिए भी लाभदायक होता है। इसके अलावा इन फलों में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण विघमान होते हैं, जो हमें रोगों से बचाता है। अनार का जूस मूत्र संक्रमण के लिए एक निवारक का कार्य करता है।

ड्रैगन फ्रूट

यह अनोखा आकर्षक उष्णकटिबंधीय फल है, इसका सेवन हमारी मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियों से रक्षा करता है। आहार में ड्रैगन फ्रूट को शम्मिलित करने से यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को अच्छा बनाता है। साथ ही, हृदय से जुड़ी बीमारियों के लिए भी अच्छा माना जाता है।

बैंगनी पत्तागोभी

यह रंगीन पत्तेदार हरी पत्तागोभी एंटीऑक्सीडेंट का एक शक्तिशाली भंडार होती है, जो हमारे शरीर की सेलुलर क्षति के विरुद्ध एक प्रभावी सुरक्षा प्रदान करती है। इसमें विघमान विटामिन सी एवं कैरोटीन की भरपूर मात्रा के साथ-साथ पर्याप्त फाइबर भी मौजूद होता है, जो हमारे शरीर की प्रतिरक्षा करता है।

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लीची

लीची तांबा, लोहा, मैग्नीशियम और फॉस्फोरस जैसे खनिज तत्वों से भरपूर होती है। यह हमारे शरीर की हड्डियों को शक्ति प्रदान करता है। यह मोतियाबिंद, मधुमेह, तनाव एवं हृदय रोगों से भी शरीर को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
इस राज्य में मधुमक्खी पालन करने पर कृषकों को 90 प्रतिशत अनुदान मिलेगा

इस राज्य में मधुमक्खी पालन करने पर कृषकों को 90 प्रतिशत अनुदान मिलेगा

खेती किसानी के साथ ही मधुमक्खी पालन (Beekeeping) करने से भी किसानों की आमदनी बढ़ सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए बिहार उद्यान निदेशालय ने मधुमक्खी पालन (Beekeeping) और हनी मिशन योजना की शुरुआत की है। इस योजना के अंतर्गत मधुमक्खी पालन करने वाले किसान भाइयों को 90 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए बिहार उद्यान निदेशालय द्वारा मधुमक्खी पालन के लिए योजना जारी की जा रही है। यह योजना बी कीपिंग एंड हनी मिशन के नाम से चलाई जा रही है। दरअसल, इस योजना के अंतर्गत मधुमक्खी पालन करने वाले किसानों को अनुदान दिया जाता है। सामान्य वर्ग के किसानों को 75 प्रतिशत और एससी, एसटी के लिए राज्य सरकार द्वारा 90 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। मधुमक्खी पालन के लिए औजार जैसे- हनी प्रोसेसिंग, बाटलिंग व हनी टेस्टिंग और मधुमक्खी बक्सा पर अनुदान का प्रावधान किया गया है। गौरतलब है, कि राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत कुल अनुदान सामान्य जाति के लिए 75 प्रतिशत और अनुसूचित जाति के लिए 90 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाता है। 

बिहार सरकार शहद उत्पादन को प्रोत्साहन दे रही है

बिहार सरकार शहद उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए किसानों को 75,000 मधुमक्खी के बक्से और छत्ते देगी। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि डीबीटी पोर्टल पर रजिस्टर्ड किसान ही इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। बक्से के साथ ही मधुमक्खी पालक छत्ता भी प्रदान किया जाएगा। छत्ते में रानी, ड्रोन और वर्कर्स के साथ 8 फ्रेम उपस्थित होंगे। सभी फ्रेमों की भीतरी दीवार मधुमक्खियों और ब्रुड्स से पूर्णतय ढंकी होगी। इसके साथ ही शहद निकलाने के लिए मधु निष्कासन यंत्र पर भी अनुदान दिया जाएगा।

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मधुमक्खी पालन से होने वाले लाभ

अगर किसान इसे व्यवसाय के रूप में करते हैं, तो इसके बहुत सारे लाभ हैं। वहीं, इससे फसलों के परागण में भी काफी सहायता मिलती है। इससे फसल का उत्पादन बढ़ता है। किसान मधुमक्खी पालन करके उससे निकले शहद को बाजारों में बेचकर काफी बेहतरीन मुनाफा भी कमा सकते हैं।

 

योजना का लाभ उठाने के लिए इस तरह आवेदन करें

ऑनलाइन आवेदन करने के लिए सर्वप्रथम उद्यान विभाग की आधिकारिक  वेबसाइट  http://horticulture.bihar.gov.in/ पर जाना होगा। इसके बाद होम पेज पर योजना का विकल्प चयन करें। इसके बाद आप एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना पर क्लिक करें। फिर मधुमक्खी पालन के लिए आवेदन करें। इसके बाद रजिस्ट्रेशन फॉर्म खुल जाएगा। इसके बाद मांगी गई सारी जानकारी को ध्यानपूर्वक भर दें। समस्त जानकारी भरने के पश्चात आप सबमिट कर दें। फिर आपका सफलतापूर्वक आवदेन जमा हो जाएगा।